सुनु,सुनु सबकोई सुनु !
माई के गुङी चिख सुनु !!
हमर मनके बात सुनु!
मगही के गावल गीत सुनु!!
हे भाषा के भाषाबिद सुनु !
एगो माईके भेदित बात सुनु !!
आईल हो आंच आई माई पर !
पहिचान के लेल अवाज सुनु !!
राखेला पर्दा मे खोजले हय
सब मिल के पर्दाफास करु !!
मगही के ई साख सुनु !
मगहीके अटकल बात सुनु
मगही मे गबित गीत सुनु !
जग मे कोयल सन राग भरु !!
दिन बित गेलै से बन्द रहल !
आब मगही रुपि फुलित गुलाब देखु !!
जे ज्ञान के पाठ सिखइले हय
ओई ज्ञान से ओकरा उदय करु !!
ईतिहासके गन्दा खेल बुझु !
मगही के झण्डा उच्च करु !!
सुनु,सुनु सबकोई सुनु!
माई के गुङी चिख सुनु!!!
खाली भाषा न पहिचानो हय मगही ।
जनबोलिमे ,समाजके अलगे सान हय मगही।।
हमरा भितरके जागर हय मगही।
ममताके सागरमे रहल तलाव हय मगही।।
ममताके रसपान करु !
पहिचान के हि स्वभिमान बुझु!!
राखेला पर्दा मे खोजले हय!
सब मिल के पर्दाफास करु!!
हे भाषा के भाषाबिद सुनु!
माई मगही के अवाज सुनु!!
-धन्यवाद –
गजलकार:- राजु महतो
ठेगाना :- मनरा सिस्वा नगरपालिका
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